Last modified on 13 अप्रैल 2011, at 20:02

तब राम राम कहि गावैगा / रैदास

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:02, 13 अप्रैल 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तब रांम रांम कहि गावैगा।
ररंकार रहित सबहिन थैं, अंतरि मेल मिलावैगा।। टेक।।
लोहा सम करि कंचन समि करि, भेद अभेद समावैगा।
जो सुख कै पारस के परसें, तो सुख का कहि गावैगा।।१।।
गुर प्रसादि भई अनभै मति, विष अमृत समि धावैगा।
कहै रैदास मेटि आपा पर, तब वा ठौरहि पावैगा।।२।।