भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दो भीगे शब्द / अनामिका अनु
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:34, 22 अगस्त 2020 का अवतरण
तुम क्या
दे देते हो
जो कोई नहीं दे पाता
दो भीगे शब्द
जो मेरे सबसे शुष्क प्रश्नों का
उत्तर होते हैं ।
तुम मुझसे ले लेते हो
तन्हा लम्हें
और मैं महसूस करती हूँ
एक गुनगुनाती भीड़
ख़ुद के ख़ूब भीतर ।
मेरी पीड़ाओं पर
तुम्हारा स्पर्श
एक नई रासायनिक प्रतिक्रिया का
हेतु बनता है,
मेरी पीड़ाएँ
तुम्हारे स्पर्श में घुलकर
शहद हो जाती हैं,
मैं मीठा महसूस करती हूँ ।