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कामना / लुईज़ा ग्लुक / विनोद दास
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उस पल को याद करो जब तुमने यह कामना की थी
मैं अनगिनत कामनाएँ करती रहती हूँ
उस समय मैंने तितली के बारे में झूठ बोला था
मैं हमेशा चकित होती हूँ
कि तुम्हारी कामना क्या है
तुम क्या सोचते हो कि मैंने किसकी कामना की होगी
मैं नहीं जानती कि मैं वापस लौटूँगी
कि हम आख़िर में किसी भी सूरत में एक साथ होंगे
मैं वही कामना करती हूँ जिसकी कामना मैंने हमेशा की
मैं अगली कविता की कामना करती हूँ
अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास