समय से अनुरोध / अशोक वाजपेयी
लेखक: अशोक वाजपेयी
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समय , मुझे सिखाओ
कैसे भर जाता है घाव ?-पर
एक अदृश्य फाँस दुखती रहती है
जीवन-भर|
समय, मुझे बताओ
कैसे जब सब भूल चुके होंगे
रोजमर्रा के जीवन-व्यापार में
मैं याद रख सकूँ
और दूसरों से बेहतर न महसूस करूँ|
समय, मुझे सुझाओ
कैसे मैं अपनी रोशनी बचाए रखूँ
तेल चुक जाने के बाद भी
ताकि वह लडका
उधार लाई महँगी किताब एक रात में ही पूरी पढ सके|
समय, मुझे सुनाओ वह कहानी
जब व्यर्थ पड चुके हों शब्द,
अस्वीकार किया जा चुका हो सच,
और बाक़ि न बची हो जूझने की शक्ति
तब भी किसी ने छोडा न हो प्रेम,
तजी न हो आसक्ति,
झुठलाया न हो अपना मोह|
समय सुनाओ उसकी गाथा
जो अन्त तक बिना झुके
बिना गिडगिडाए या लडखडाए,
बिना थके और हारे, बिना संगी-साथी,
बिना अपनी यातना को सबके लिए गाए,
अपने अन्त की ओर चला गया|
समय, अँधेरे में हाथ थामने,
सुनसान में गुनगुनाहट भरने,
सहारा देने, धीरज बँधाने
अडिग रहने, साथ चलने और लडने का
कोई भूला-बिसरा पुराना गीत तुम्हें याद हो
तो समय , गाओ
ताकि यह समय,
यह अँधेरा,
यह भारी असह्य समय कटे!