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मेरे भीतर / कविता भट्ट

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मेरे भीतर
जो चुप -सी नदी बहती है
वेग नहीं, किन्तु आवेग है इसमें
बहुत वर्षों से-
डुबकी लगा रही हूँ
अपने को खोज न सकी अब भी
न जाने किस आधार पर
मैं अपने जैसे-
एक साथी की खोज में थी।