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जब पपीहे ने पुकारा / अज्ञेय

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जब पपीहे ने पुकारा-- मुझे दीखा--

दो पँखुरियाँ झरीं गुलाब की, तकती पियासी

पिया-से ऊपर झुके उस फ़ूल को
ओठ ज्यों ओठों तले।

मुकुर मे देखा गया हो दृश्य पानीदार आँखों के।

हँस दिया मन दर्द से--
’ओ मूढ! तूने अब तलक कुछ नहीं सीखा।’
जब पपीहे ने पुकारा- मुझे दीखा।

इलाहाबाद
१ अगस्त, १९४८


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