भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अन्तर / अजित कुमार

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:05, 1 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो कल था
वही आज भी है
छल
सिर्फ़ बँधने के लिए
मन
उतना सरल नहीं रहा ।

वही मोर नाचे वन में,
उसी
पूरे संतुलन में,

पर
अधूरापन एक
जाने कहाँ
करकने लगा ।