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जिजीविषा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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जिजीविषा हो तुम
तुम्हारा होना
जीवन का व्याज
तुम न होते
तो खोजते कहाँ
अपनापन
किस द्वार जाते?
कहाँ से पाते ऊर्जा
कहाँ से नेह पाते
जीवन की जोत
कैसे जगाते
तुम बने रहना
आरती के समय
तुम कण्ठ मिलाना
भोर की सन्ध्या में।
चुपचाप चले आना
सौभाग्य की तरह;
क्योंकि
तुम्हीं हो कारण
तुम्हीं हो व्याज
मेरे लघुजीवन का।