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सौन्दर्य लहरी / पृष्ठ - ८ / आदि शंकराचार्य
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नखानामुद्योतैर्नवनलिनरागं विहसतां
कराणां ते कान्तिं कथय कथयामः कथमुमे ।
कयाचिद्वा साम्यं भजतु कलया हन्त कमलं
यदि क्रीडल्लक्ष्मी चरणतललाक्षाऽऽरुण दलम् ॥७१॥
समं देविस्कन्द द्विप वदन पीतं स्तनयुगं
तवेदं नः खेदं हरतु सततं प्रस्नुतमुखं ।
यदालोक्या शङ्काऽऽकुलित हृदयो हासजनकः
स्वकुम्भौ हेरम्बः परिमृशति हस्तेन झटिति ॥७२॥