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अहं-मुक्ति / कैलाश वाजपेयी

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उतर आ लकड़ी के चकरबाज़ घोड़े से
फेंक दे यह झुनझुना
मैं तुझे लोहे की गोली दूँगा !
साँप हवा पीता है जैसे—सोच नहीं ।
क्या बाँध रक्खा है गठरी में
चूड़ी के टुकड़े

रेशमी लत्तड़
राँगे के मुकुट
कुछ चिथड़ा तस्वीरें ?

फेंक इन्हें
मैं तुझे दूसरा तमाशा दिखाऊँगा
कच्ची दालान पर
आले में छोटा
संदूक़ रखा है।

झाँक भला
पहले सूराख से
भीतर कुछ दिखता है ?

मार लोहा ज़ोर से
डर नहीं
यह छटपटाहट तेरी नहीं
शीशा
टूटा है !