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आई ऋतु नवल / कविता भट्ट
Kavita Kosh से
कली बुराँस
अब नहीं है उदास
आया वसंत
ठिठुरन का अंत
मन मगन
हिय है मधुवन
सुने रतियाँ
पिय की ही बतियाँ
मधु घोलती
कानों में बोलती
प्रेम-आलाप
सुखद पदचाप
स्फीत नयन
तन -मन अगन
अमिय पान
चपल है मुस्कान
ये दिव्यनाद
नयनों का संवाद
अधर धरे
उन्मुक्त केश वरे
तप्त कपोल
उदीप्त द्वार खोल
हुई विह्वल
इठलाती चंचल
आई ऋतु नवल।
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