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एक दिन सब / गगन गिल

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सब जान लेगी वह

तुम्हारे बारे में

अपने तप से एक दिन


सुन लेगी सब बातें

तुम्हारे चीवर और

देह के बीच


पता चल जाएगा उसे

तुरंत

किस देश की

कौन सड़क पर

चलते हुए

अभी-अभी कांपा था

तुम्हारा पांव


कितने बजे थे घड़ी में उस दिन

जब चला था एक

बुलबुला कहीं से

और फूट गया था

आकर

तुम्हारे हृदय में


कितने अंश का कोण

बन रहा था

जमीन पर

तुम्हारे हाथ की छाया का

जब आईने के सामने खड़े

धकेला था पीछे

तुमने पीड़ा की लहर को


उससे कुछ भी नहीं छिपेगा

हालांकि

वह कहीं नहीं होगी


सब मालूम होगा उसे

नींद आने के कितने क्षण बाद

तुम डूब जाते हो

फिर आते हो सतह पर

मांगते बुद्ध से शरण

नीम-बेहोशी में


कोई उसे

बताएगा नहीं

पूछने नहीं जाएगी

वह किसी से


उसकी जान का आतिशी कांच

जल रहा है जो

धू-धू

इतने दिनों से


साफ़ दीखता होगा

उसमें

सब ।