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बटोही / अनीता सैनी

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अबकी बार गुज़रो
उस राह से
ज़रा ठहर जाना
पीपल की छाँव में
तुम पलट जाना
उस मिट्टी के ढलान पर
बैठी है उम्मीद
साथ उस का निभा देना
तपती रेत पर डगमगाएँगे क़दम
तुम हाथ थाम लेना
उसकी ज़मीरी ने किया है
ख़्वाहिशों का क़त्ल
तुम दीप अरमानों का जला देना
नाकाम रही वो राह में
नाउम्मीद तो नहीं
बटोही हो तुम राह के
मंज़िल तक पहुँचा देना।