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ग़द्दारे-क़ौम और वतन / सीमाब अकबराबादी
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द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:45, 20 फ़रवरी 2012 का अवतरण
किया था जम’अ जाँबाज़ों ने जिसको जाँ-फ़रोशी से
रुपहले चन्द टुकडों पर वो इज़्ज़त बेच दी तूने
कोई तुझ-सा भी बे-ग़ैरत ज़माने में कहाँ होगा?
भरे बाज़ार में तक़दीरे-मिल्लत बेच दी तूने