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 सप्ताह की कविता

  शीर्षक: शासन की बन्दूक
  रचनाकार: नागार्जुन

खड़ी हो गई चाँपकर कंकालों की हूक 
नभ में विपुल विराट-सी शासन की बंदूक 

उस हिटलरी गुमान पर सभी रहें है थूक 
जिसमें कानी हो गई शासन की बंदूक 

बढ़ी बधिरता दस गुनी, बने विनोबा मूक
धन्य-धन्य वह, धन्य वह, शासन की बंदूक 

सत्य स्वयं घायल हुआ, गई अहिंसा चूक 
जहाँ-तहाँ दगने लगी शासन की बंदूक 

जली ठूँठ पर बैठकर गई कोकिला कूक 
बाल न बाँका कर सकी शासन की बंदूक