Last modified on 5 फ़रवरी 2009, at 02:30

एक अहम बात / लीलाधर जगूड़ी

92.243.181.53 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 02:30, 5 फ़रवरी 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कपड़े की तरह निचोड़े हुए फटकारे हुए वर्तमान को
भविष्य से भिगोती है बूंद-बूंद रिसती हुई काली रात

अभी इस बाग़ीचे का वह हिस्सा भी डूब जाएगा
जिसमें सबसे ज़्यादा पराग होगा कल
सबसे ज़्यादा मीठे फल होंगे
और उनसे भी कोमल और शुद्ध होगी हवा

ख़ुशी कई बार आएगी ऎसे कि जैसे जेब में हो
जब चाहें छू लें, देख लें और खर्च कर डालें
मगर बस उतनी देर जितने में तितली
एक फूल पर बैठे और उड़ जाए
पर चाहे जितनी देर को हो ख़ुशी फिर भी एक अहम बात है।