भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कितने धार्मिक / प्रफुल्ल कुमार परवेज़

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:52, 8 फ़रवरी 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कितनी धार्मिक होती है बंदूक़
जिससे छूटकर धर्म
बेक़सूर आदमी में
दनादन उतर जाता है

कितनी धार्मिक होती हैं इच्छाएँ
कि आदमी आदमीपन से मुकर जाता है
और लगातार चील की तरह् मंडराता है

कितनी धार्मिक होती है भूख
जो केवल लाशें निगलती हैं


कितनी धार्मिक होती है प्यास
जो केवल खून पीती है

कितनी धार्मिक प्रतिक्रिया
लाश के बदले लाश
खून के बदले खून

कितने धार्मिक होते हैं धर्म ग्रंथ
समय की गवाही में
को केवल शब्दाडंबर हैं
आदमी के दिमाग़ में जब भी खुलते हैं शब्दार्थ
ठीक विपरीत खुलते हैं
प्रत्यक्ष जो अंदर हैं