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उलझन / रंजना भाटिया
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कई उलझने हैं,
कई रोने को बहाने हैं,
कई उदास रातें हैं
पर...
पर....
जब तेरी नज़रें मेरी नज़रों से...
जब तेरी धड़कनें मेरी धड़कनों से....
और तेरी उँगलियाँ मेरी उँगलियों से उलझ जाती हैं,
तो
मेरे जीवन की
कई अनसुलझी समस्यायें
जैसे ख़ुद ही सुलझ जाती हैं...