Last modified on 6 नवम्बर 2009, at 22:27

बाँसुरी कृष्ण की / अवतार एनगिल

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:27, 6 नवम्बर 2009 का अवतरण

एक बार ऐसा हआ
कि आदाश और ईश्वर
कृष्ण की बाँसुरी के पोर में
इक-दूजे से मिले
मिले, औ'मिलते ही
तरल धुन बनकर बहने लगे

...ऐसा हुआ
कि भक्ति और भाव
राधिका के कदमों की ठुमक में
इकट्ठे हुए
...फिर क्या, थिरकन बनकर
उसके चहुँ ओर नृत्य करने लगे।

अरे ओ, अहेरी मन!
बाँसुरी भी वही तो बजायेगा न
जिसके भीतर
नक्षत्रों को स्वर बनकर
नाचता हुआ आकाश
आकर स्वयं समा जाएगा

जब कभी आकाश और ईश्वर
बाँसुरी में
धुन बनकर बहेंगे
जब कभी भक्ति और भाव
राधिका बन थिरकेंगे
अनंत नृत्य होगा
होगा अनंत नृत्य
नाचेंगे हम लगातार
लगातार नाचेंगे हम।