भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शारदे! / उदयप्रताप सिंह
Kavita Kosh से
संपदा त्रिलोक की न अंब चाहिये मुझे,
सपूत कह के प्यार से पुकार दे ओ शारदे ।
रोम-रोम मातृ ऋण भार से विनत-नत,
शुभ्र उत्तरीय से दुलार दे ओ शारदे ।
चेतना सदा ही रहे तेरी साधना की मातु
भावना दे, ज्ञान दे, विचार दे ओ शारदे ।
मोरपंख वाली लेखनी का कर शीश धर,
तार-तार वीणा झनकार दे ओ शारदे ।