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मृत्यु-2 /शुभाशीष चक्रवर्ती

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तुम्हारी आवाज़ मेरी निःशब्द परछाई का
बिम्ब है
अभी-अभी शरीर से निकली आत्मा
टिकी है खिड़की के पास
तुम्हारे लौटते ही
वह सरकती है बाहर
देहों के बीच
तुम चीखती हो
वह रुक जाती है
तुम मुझे चूमती हो
वह पास आती है
तुम्हारे गिरते आँसू
मेरे शरीर को छूते हैं
वह भीग जाती है
स्पर्श-आभा में

वह मेरे भीतर
फिर से रिस जाती है
तुम आवाज़ बिखेरती हो
वह सोखती जाती है उसे
चुपचाप पड़े एकान्त में