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आपस का रिश्ता / नंद भारद्वाज
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इतना करार तो बचा ही रहता है
हर वक़्त हाथी की देह में
कि अपनी पीठ पर सवार
महावत की मनमानियों को
उसके अंकुश समेत
उतार दे अपनी पीठ से बेलिहाज
और हासिल कर ले अपनी आज़ादी
सिर्फ़ अपनी परवरिश का लिहाज
उसके हाथों की मीठी थपकियाँ
और पेट भर आहार का भरोसा रोक लेता है
उसके इरादों को हर बार
एक अनकही हामी का आपसी रिश्ता
ऎसे ही बना रहता है दोनों के बीच
बरसों-बरस!