भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उम्र / पुष्पिता
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:08, 16 जनवरी 2013 का अवतरण
उम्र
पकड़ती है — कमर
फिसलती हुई
खेलती है — पीठ के मैदान में
और धँसा देती है — देह
बुढ़ापा
बैठता है — कंधे पर
पकड़ता है गला
और चेहरे को कसता है
अपने पंजे के भीतर
उम्र का शिकंजा
अपनी रगड़ से चेहरे पर
बनाता है — बुढ़ापे का जाल
खुरचता है यौवन की चमक
और चिपकाता है — झुर्रियों का जाल
जिसमें समेटकर
ले जाती है — मृत्यु
उसे
सबसे बेख़बर लोक में ।