भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अध्यापक से / रघुवीर सहाय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:49, 8 मार्च 2010 का अवतरण
मरने से पहले घर एक बार जाने की आकांक्षा
साहित्य के अंदर कितना पिटा हुआ वाक्य बन जाती है ।
अरे भले आदमी, अध्यापक,
लेखक की यह जीवन भर की कमाई थी
करुणा से स्वर कंपाय तुमने बहाय दी ।