ए अलि हमेँ तो बात गात की न जानि परै ,
बूझत न काहे वामे कौन कठिनाई है ।
कहै पदमाकर क्योँ अँग न समाती आँगी ,
लागी काह तोहि जागी उर मे उंचाई है ।
तौब तजि पाँयन चली है चँचलाई कितै ,
बावरी बिलोकै क्यों न आँखिन मैँ आई है ।
मेरी कटि मेरी भटू कौन धौं चुराई ,
तेरे कुचन चुराई कै नितंबन चुराई है ।
पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।