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अपने जन्मदिन पर-2 / प्रेमचन्द गांधी

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बढ़ती जा रही है बालों मे सफे़दी
कम होते जा रहे हैं आकर्षण
स्मृति से लुप्त होते जा रहे हैं
सहपाठियों के नाम और चेहरे

संघर्ष भरे दिन
आज भी दहला देते हैं दिल
शायद अब न लड़ सकूँ पहले की तरह