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एक मौन / शमशेर बहादुर सिंह
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सोने के सागर में अहरह
एक नाव है
(नाव वह मेरी है)
सूरज का गोल पाल संध्या के
सागर में अहरह
दोहरा है...
ठहरा है...
(पाल वो तुम्हारा है)
एक दिशा नीचे है
एक दिशा ऊपर है
यात्री ओ!
एक दिशा आगे है
एक दिशा पीछे है
यात्री ओ!
हम-तुम नाविक हैं
इस दस ओर के:
अनुभव एक हैं
दस रस ओर के:
यात्री ओ!
आओम एकहरी हैं लहरें
अहरह ।
संध्या, ओ संध्या! ठहर-
मत बह!
अमरन मौन एक भाव है
(और वह भाव हमारा है ! )
ओ मन ओ
तू एक नाव है !
(और वह नाव हमारी है ! )
(१९५१ में लिखित)