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दो शेर-एक मक़्ता / फ़ानी बदायूनी
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चंद्र मौलेश्वर (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:40, 7 जुलाई 2009 का अवतरण
तर्के-तदबीर को भी देख लिया।
यह भी तदबीर कारगर न हुई॥
यूँ मिली हर निगाह से वो निगाह।
एक की एक को ख़बर न हुई॥
आज तस्कीने-दर्देदिल ‘फ़ानी’।
वह भी चाहा किये मगर न हुई॥