भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दो शेर-एक मक़्ता / फ़ानी बदायूनी

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:37, 13 जुलाई 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तर्के-तदबीर को भी देख लिया।

यह भी तदबीर कारगर न हुई॥


यूँ मिली हर निगाह से वो निगाह।

एक की एक को ख़बर न हुई॥


आज तस्कीने-दर्देदिल ‘फ़ानी’।

वह भी चाहा किये मगर न हुई॥