भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्यार की नदी / इसाक अश्क

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:53, 29 अप्रैल 2008 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सूखी

गुलदस्ते सी

प्यार की नदी


व्यक्ति

संवेग सब

मशीन हो गए

जीवन के

सूत्र

सरेआम खो गए

और कुछ न कर पाई

यह नई सदी


वर्तमान ने

बदले

ऐसे कुछ पैंतरे

आशा

विश्वास

सभी पात सो झरे

सपनों की

सर्द लाश

पीठ पर लदी।