नाम : अमित अरुण साहू 
जन्म : २४ जून १९८० 
शिक्षा: ऍम. कॉम. ऍम. बी. ऐ. 
प्रेरणा स्त्रोत : दुष्यंत कुमार 
ग़ज़ल शिक्षक : पंकज सुबीर सर 
ई- मेल : amitsahuccci@yahoo.com 
मोबाईल नंबर : ०९८६०२८००७५ 
पता : अमित अरुण साहू , सी.सी.सी.आय. ,  
डॉक्टर बोरकर के दवाखाने के पास ,
अष्टभुजा मंदिर, धन्तोली, वर्धा, महाराष्ट्र
अमित साहू , बापू और विनोबा की कर्मभूमि वर्धा के बाशिंदे है .
अकाउंट और अर्थशास्त्र के शिक्षक अमित पिछले २ वर्ष से
कविता कोष को पढ़ते आ रहे है. इन्हें विशेष रूप से हरिवंश राय बच्चन ,
दुष्यंत , बशीर बद्र , निदा फाजली और प्रेमचंद को
पढ़ना पसंद है.
	   अपने परिचय में बस अपनी कुछ रचनाये ही पेश कर सकता हूँ . 
 
आखिर आपका काम ही आपकी पहचान है ...........
आतंकवादियों के नाम अमित साहू का पैगाम 
कभी किसी की बात का ऐसा असर भी हो  
बदले ख़यालात और खुदा का डर भी हो  
 
आतंकियों के दिल में जगे प्यार की अलख  
बीवी हो,बच्चे हो,प्यारा-सा घर भी हो  
खुदा के नाम पर लगा रखी है जेहाद  
खुदा की पाकीजगी का जरा असर भी हो  
निहत्थों और बेगुनाहों पे गोलियां चलाना  
हिजडों की करामात है,उन्हें खबर भी हो  
क्या सोचते हो के खुदा तुम्हे जन्नत देंगा  
हैवान होकर सोचते हो के बशर भी हो  
करते हो हमेशा ही 'गैर मुसलमाना' हरकत  
फिर सोचते हो के दुआ में असर भी हो  
मैं कहता हूँ, तुम मुस्लिम हो ही नहीं सकते  
बिना धर्म के हो तुम , ये तुमको खबर भी हो  
- अमित अरुण साहू, वर्धा
जहर तो प्यार की निशानी है .........
जहर को इतनी गलत नज़र से न देखिये
जहर तो प्यार की निशानी है .........
आप आइये और मेरे साथ बैठिये जरा
सुनिए जहर की भी अपनी कहानी है ...
१) एक गरीब माँ अपने बच्चों की रोटी के लिए 
रही बेचती जिस्म अपना बाज़ार में
जब बच्चें हुए बड़े और जाना ये सब
छोड़ आए माँ को अपनी मझधार में
उसने कोई शिकवा और शिकायत न की
पी गयी जहर जिल्लत का बच्चों के प्यार में
न जाने ये कितनी माँओं की कहानी है
जहर को इतनी गलत नज़र से न देखिये
जहर तो प्यार की निशानी है .........
२) एक बूढा था इस देश में कभी  
सारा जीवन दूसरों के नाम किया था
अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर
हमेशा अपने देश के लिए जिया था
पर लगा दी लोगो ने उसपर भी तोहमत बटवारे की
पी गया वो जहर तोहमत का देश के प्यार में
न जाने ये कितने देशभक्तों की कहानी है
जहर को इतनी गलत नज़र से न देखिये
जहर तो प्यार की निशानी है .........
३) कहते है हुआ था समुद्रमंथन कभी  
अमृत भी निकला था उसमे और गरल भी
स्वार्थ लोलुपों ने अमृत छक-छक कर पिया
पर छुआ नहीं उन्होंने गरल को कभी
ऐसे में आये भोले-भाले शिवशंकर वहीँ
और पिया जहर शिव ने अपनों के प्यार में
न जाने ये कितने शंकरों की कहानी है
जहर को इतनी गलत नज़र से न देखिये
जहर तो प्यार की निशानी है .........
४) एक पतिव्रता थी जिसने पति के लिए  
त्यागा राज-पाट और गयी जंगल की ओर
पग-पग पर दिया साथ उसने अपने पति का
पति के ही संग बंधी रही उसके मन की डोर
पर उसे भी देनी पड़ी अग्निपरीक्षा
पी गयी वो जहर कलंक का पति के प्यार में
न जाने ये कितनी पत्नियों की कहानी है
जहर को इतनी गलत नज़र से न देखिये
जहर तो प्यार की निशानी है .........
---- अमित अरुण साहू , वर्धा
दिल की बातें दिल में रह गयी
दिल की बातें दिल में रह गयी , जुबाँ पे आया कुछ भी नहीं  
सोचा बहुत था, पर आई जब तुम, हमने बताया कुछ भी नहीं 
कभी ये मोती, कभी ये शबनम , तुम्हारा कतरा गंगाजल नम 
गम तो यहाँ भी दबे बहुत थे, हमने बहाया कुछ भी नहीं  
बादल, बिजली, सूरज , चंदा, तारें, मौसम सब तुम हो  
जो कुछ था सब तुमपे लुटाया, हमने बचाया कुछ भी नहीं  
दुःख सब मेरे, सुख सब तेरे, हम है तेरे गम के लुटेरे  
दर्द की वैसे खेती की है, तुझे भिजवाया कुछ भी नहीं  
चंचल आँखें, नाजुक बातें , चाँद सा चेहरा , जुल्फें रातें  
एक झलक में इतना सब कुछ, अभी दिखाया कुछ भी नहीं  
बदन धूप का, खिले रूप का, फूल-सी खुशबू , अल्ला हू 
सारी नेमत तेरे हिस्से , हमने पाया कुछ भी नहीं  
तेरा पसीना ओस की बूंदें , आसूं तेरे गौहर हैं  
हम जो हँसें तो बने गुनाह, तूने जो रुलाया कुछ भी नहीं  
 
पता हैं तूने पिया न पानी, चाँद जो तुझको दिखा नहीं  
मैंने भी है साथ निभाया , सुबह से खाया कुछ भी नहीं  
मेरी बरकत, मेरी शोहरत, सब तुझसे ही रोशन हैं  
जो कुछ है सब तेरा है, मेरा कमाया कुछ भी नहीं  
- अमित अरुण साहू , वर्धा
मित्र
गुलाब,कस्तूरी,लोबान, इत्र - क्या है तू ?  
खुशबू का बदन लिये, मेरी मित्र - क्या है तू ? 
तुझे देखकर आँखें पाकीजा हो जाती है  
गंगा, यमुना या आकाशगंगा पवित्र - क्या है तू ?  
तेरे होने से क्यों ख़ुशी सी महसूस करता हूँ  
उज्वल,खुशनुमा, अनसुलझा चरित्र - क्या है तू ?  
तेरी इक तस्वीर में सारे रंग कुदरत के 
खुदा के कैनवास पर बना चित्र - क्या है तू ?  
विनम्र , करुणामयी, ममता की मूरत  
इन्सान है या संत , ऐ सतचरित्र - क्या है तू ?  
अमित अरुण साहू , वर्धा
तुम्हारी याद का जो दर्द है, तुम्हे बतला नहीं सकता  
तुम झुठला दो मोहब्बत को , मै झुठला नहीं सकता 
तुमने तो बसा ली है , अपनी इक अलग दुनिया  
किसी के दम पे तुम बिन दिल को मैं बहला नहीं सकता  
हर कदम हर पल तुझसे सामना होंगा  
पता न था तुझे देखकर दिल को थामना होंगा  
काश के परदे में ही रहती तू सदा जालिम  
बेकाम हुए , हमसे अब कोई काम ना होंगा  
आसूओं से लिखी हुई इबारतों का क्या  
बिना नींव के खड़ी हुई इमारतों का क्या  
बिन कहे कहा है तूने, वो सच है क्या ? 
वर्ना तेरी आखों की शरारतों का क्या ? 
हो तुम दिल की रानी , तुम जुदा हो नहीं सकती  
अंतर्मन से निकली हुई दुआ यूँ खो नहीं सकती  
छीन लूँगा मैं ज़माने से , जो हक़ है मेरा  
हमेशा दुपट्टे में छुपके मोहब्बत रो नहीं सकती  
अमित अरुण साहू , वर्धा
आज संध्या की ये बेला  
आज संध्या की ये बेला  
आ करूँ अभिषेक तेरा  
तुझ पे अर्पण सूर्य किरणें  
आ वन्दन करूँ मैं तेरा . 
जल की बूंदों से भरें बादल - सा  
संवेदनाओं भरा मन मेरा . 
आज संध्या की ये बेला  
आ करूँ अभिषेक तेरा -१-  
पंछी जाते अपने घर पर  
ले के मुहं में दाने भर - भर . 
मैं अपने स्नेह कणों से 
आज भर दूँ आँचल तेरा . 
आज संध्या की ये बेला  
आ करूँ अभिषेक तेरा -२-  
भूलकर दिन की थकन को 
आ गया तेरे नमन को. 
तेरे चरणों में है अर्पित  
सारा श्रम मेरा . 
आज संध्या की ये बेला  
आ करूँ अभिषेक तेरा -३-  
फलों से लदे पेडो पर  
पंछियों ने डाला डेरा  
पर मैं जाऊँ कहाँ पर ? 
तेरी छाया है घर मेरा .  
आज संध्या की ये बेला  
आ करूँ अभिषेक तेरा -४-  
प्रेषक : अमित अरुण साहू मोबाइल नंबर : ०९८२२९४२२०२