Last modified on 24 दिसम्बर 2009, at 15:50

ताननि की ताननि मही / नागरीदास

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:50, 24 दिसम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ताननि की ताननि मही, परयौजुमन धुकि धाहिं।
पैठयो रव गावत स्त्रवनि, मुख तैं निसरत आहि॥

मुख तैं निसरत आहि! साहि नहिं सकत चोट चित।
ज्ञान हरद तैं दरद मिटत नहिं, बिबस लुटत छित॥

रीझ रोग रगमग्यौ पग्यौ, नहिं छूटत प्राननि।
चित चरननि क्यौं छुटैं, प्रेम वारेन की ताननि॥