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शरद / नंदकिशोर आचार्य
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जा चुका बालापन
यौवन की दहलीज पर है शरद
नहीं पूनो, चौदस की रात
हवा में हल्की-सी ख़ुनकी
प्यार का जग रहा
जैसे पहला एहसास।