शंकर भोला
नहीं तुम्हारे सिर मुकुट
	न वैजयंती माल
	न पीताम्बर नीलाम्बर
	पहनी मृगछाल।
बने धूड़ू 
धूल पहन नाचे
	जटा खलार
धूड़ू नचेया जटा ओ खलारी हो..............।
बैल की सवारी 
न छत्र न ढाल 
न धनुष न बाण
न रथ न शान।
किया अपमानित प्रजापतियों ने
किया उपहास हर पहर 
फिर तुम बने 
	शव से शिव
शिव तुम बनवासी
नहीं आई तुम में 
	नगर की चालाकी
रहे तुम आदिवासी।