भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाइकु / ज्ञानेन्द्रपति
Kavita Kosh से
देवता हुए
सामंत सहायक
राजतंत्र में
मिटता नहीं
सिरजा जाता जिसे
एक बार
गाते न दिखा
सुना गया हमेशा
काला झींगुर
नाम दुलारी
दुखों की दुलारी है
जमादारिन
पनही नहीं
पाँव में, गले में
पगहा है भारी
मेघ बोझिल
मन भर मौसम
छूटा अकेला