Last modified on 6 नवम्बर 2009, at 10:54

सिंदबाद : एक / अवतार एनगिल

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:54, 6 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पिता का धन
मौसमी मित्रों पर लुटा
ठगा-सा
रह गया
सिंदबाद

और अब
इस निर्मम अंधेरी रात में
आबाद शहर का बरबाद नागरिक
गश्त लगाते चौकीदार की हांक संग
देर तक जगता है
नींद से टलता है
पर नींद में चलता है---
किसी विशाल ह्वेल की पीठ-सी
ठण्डी दीवारों को टटोलता
वापस अपने गूदड़ तक आता है
और जैसे-तैसे
कर्ज़ का जुगाड़ कर
यात्रा शुरू करने का सपना देखते हुए
बुलंद इरादे की
गहरी नींद को
अर्पित हो जाता है---
सिंदबाद।