दीपक ने रख दिया
अंधेरे की छाती पर पाँव।
सूरज हाँफ रहा था तम का
सिंहनाद गूँजा
अंधी रात
उजाला बना दिया था भड़भूजा
तभी उठा समवेत
गरजने लगा स्नेह का गाँव
छत के हिस्से में आई है
आज विहँसती शाम
द्वार करेगा स्वागत
आएँगे घर विजयी राम
आंगन खड़ा हो गया
करके रंगोली की छाँव
अँधकार के साथ वही
दृढ़ आस्था अपने आप
जुआ खेलती रही
अँधेरे कोने में चुपचाप
जीता दीपक
यद्यपि तम ने
चले निरंतर दाँव।