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मयूरी / हरिवंशराय बच्चन
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मयूरी,
नाच, मगन-मन नाच!
गगन में सावन घन छाए,
न क्यों सुधि साजन की आए;
मयूरी, आँगन-आँगन नाच!
मयूरी,
नाच, मगन-मन नाच!
धरणी पर छाई हरियाली,
सजी कलि-कुसुमों से डाली;
मयूरी, मधुवन-मधुवन नाच!
मयूरी,
नाच, मगन-मन नाच!
समीरण सौरभ सरसाता,
घुमड़ घन मधुकण बरसाता;
मयूरी, नाच मदिर-मन नाच!
मयूरी,
नाच, मगन-मन नाच!
निछावर इंद्रधनुष तुझ पर,
निछावर, प्रकृति-पुरुष तुझ पर,
मयूरी, उन्मन-उन्मन नाच!
मयूरी, छूम-छनाछन नाच!
मयूरी, नाच, मगन-मन नाच!