Last modified on 18 अप्रैल 2011, at 21:06

माधव कत तोर करब बड़ाई / सूरदास

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:06, 18 अप्रैल 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

राग घनाक्षरी

माधव कत तोर करब बड़ाई।
उपमा करब तोहर ककरा सों कहितहुँ अधिक लजाई॥
अर्थात् भगवान् की तुलना किसी से संभव नहीं है।

पायो परम पदु गात
सबै दिन एक से नहिं जात।
सुमिरन भजन लेहु करि हरि को जों लगि तन कुसलात॥
कबहूं कमला चपल पाइ कै टेढ़ेइ टेढ़े जात।
कबहुंक आइ परत दिन ऐसे भोजन को बिललात॥
बालापन खेलत ही गंवायो तरुना पे अरसात।
सूरदास स्वामी के सेवत पायो परम पदु गात॥


सूरदासजी कहते हैं कि सभी दिन एक से नहीं होते, इसलिए जब तक शरीर में प्राण हैं, भगवान् का सुमिरन और भजन कर लेना चाहिए। लक्ष्मी चंचला होती है, किसी के यहां टिकती नहीं, फिर भी धन प्राप्त हो जाने पर मनुष्य अहंकारी हो जाता है। किंतु कभी ऐसे दिन आ पड़ते हैं कि मनुष्य भोजन के लिए भी भटकता फिरता है। बाल्यवस्था तो खेल-खेल में ही बीत जाती है। युवावस्था में विषय-वासनाओं में पड़कर मनुष्य आलस्य में पड़ता है और भगवान् का भजन नहीं करता। सूरदास जी कहते हैं कि श्रीहरि की सेवा करने पर ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।