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इंतज़ार-1 / नीरज दइया

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तुम्हारे ना कहने के बाद भी
क्यों है
तुम्हारा इंतज़ार

लगता है कि तुम आओगी ।
बार-बार आहट सुनता हूँ
और खोलकर देखता हूँ-

घर का दरवाज़ा
इंतज़ार में तुम्हारे
अब मैं ही बन गया हूँ दरवाज़ा
और खड़ा हूँ घर के बाहर

इंतज़ार में ठहर गई है ज़िदगी
मुझ निर्जीव को
तुम्हारे स्पर्श का इंतज़ार है ।