भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राम रतन धन पायो / मीराबाई
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:30, 24 जून 2009 का अवतरण
पायो जी म्हे तो राम रतन धन पायो।। टेक।।
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, किरपा कर अपनायो।।
जनम जनम की पूंजी पाई, जग में सभी खोवायो।।
खायो न खरच चोर न लेवे, दिन-दिन बढ़त सवायो।।
सत की नाव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो।।
"मीरा" के प्रभु गिरधर नागर, हरस हरस जश गायो।।