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गांधी के देश में / विपिन कुमार शर्मा

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हमारे गाल पर
नहीं मारता अब तमाचा कोई
कि हम
तपाक से दूसरा गाल बढ़ा दें

अब तो चुभते हैं
उनके पैने दाँत
खच्च से हमारी गर्दन पर
और उनकी सहस्त्र जिह्वाएँ
लपलपा उठती हैं
फ़व्वारे की तरह चीत्कार करते खून पर

गांधी के इस देश में
हमें
ज़्यादा से ज़्यादा स्वस्थ होना होगा
ताकि हम उनकी खून की हवस बुझा सकें
या
उनकी यह आदत ही छुड़ा सकें