भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
औरत-13 / चंद्र रेखा ढडवाल
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:24, 13 दिसम्बर 2009 का अवतरण
(औरत -तेरह)
खिले हुए
सुन्दर फूलों की मिल्कियत
दंभ उसका
पीले कमज़ोर
तो पराजित नाराज़ वह
रंग गंध के मेलों का
सिरजनहारा
पालक
दृष्टा
पुरुष
और दोनों ही के लिए
खाद-पानी-मिट्टी होती
खिलने में खिलती कम
मुर्झाने में मुर्झाती ज़्यादा
औरत.