भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आता है याद मुझ को गुज़रा हुआ ज़माना / इक़बाल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:21, 2 जून 2008 का अवतरण
आता है याद मुझको गुज़रा हुआ ज़माना
वो बाग़ की बहारें वो सब क चह-चहाना
आज़ादियाँ कहाँ वो अब अपने घोँसले की
अपनी ख़ुशी से आना अपनी ख़ुशी से जाना
लगती हो चोट दिल पर, आता है याद जिस दम
शबनम के आँसूओं पर कलियों का मुस्कुराना
वो प्यारी प्यारी सूरत, वो कामिनी सी मूरत
आबाद जिस के दम से था मेरा आशियाना