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जबरन कूच / मिक्लोश रादनोती

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वह आदमी पागल है जो गिरने के बाद उठे और चलने लगे
घुटनों और टखनों को फिर जगाए, अकेला, भटकते हुए दर्द की तरह
फिर राह पकड़े जैसे उसे पंख उड़ाए लिए जा रहे हों
खंदक बेकार ही उसे आवाज़ देती है, उसमें रुकने की हिम्मत नहीं है
और अगर तुम पूछोगे कि क्यों नहीं है तो शायद वह मुड़कर कहेगा
उसकी पत्नी उसका इंतज़ार कर रही है और एक ज़्यादा संगत, सुन्दर मौत।
 
बेवक़ूफ़ अभागा! पिछले लम्बे अरसे से उन घरों पर
सिर्फ़ एक झुलसती हुई हवा बही है
उसके घर की दीवार ढह गई है, बेर का पेड़ टूट चुका है
और घर की सारी रातें दर से चीखती हैं

ओह, बस अगर मैं मान पाता कि जो कुछ भी सहेजने लायक है
वह सिर्फ़ मेरे दिल में ही नहीं है--कि धरती पर अब भी मेरा घर है
काश कि ऐसा है! पहले ही की तरह बेरों का ताज़ा मुरब्बा
पुराने बरामदे में ठंढा होता हुआ, चुप्पी में गुनगुनाती हुई मधुमक्खियाँ
गर्मियों के अंत की चुप्पी, उनींदी, धुप सेंकती,
वृक्षों पर पत्तियों के बीच झूलते हुए नंगे फल
और सुनहरे बालों वाली मेरी पत्नी मेरा इंतज़ार कर रही है कत्थई हाते की बाड़ी के पास
 
जहाँ सुबह धीरे-धीरे छाया पर छाया लिखती है
क्या यह सब हो सकता है ? देखो, आकाश में आज पूरा चांद है
मुझे छोड़कर न गुज़र जाओ दोस्त, पुकारो, और मैं फिर उठ चलूंगा।


रचनाकाल : 15 सितम्बर 1944

अंग्रेज़ी से अनुवाद : विष्णु खरे