भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खज़ाने में तुम्हारे / ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:45, 29 दिसम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खज़ाने में तुम्हारे लाखों गम हैं
मगर लगता है हमको फिर भी कम हैं

हमें आता है बचकर भी निकलना
बला से रास्ते में पेचोखम़ हैं

नहीं कोई हमारे साथ, तो क्या
हमारा हौसला है और हम हैं

समझते जो हमें कमजोर उनको
बता दो ये महज़ उनके वहम हैं

न बदलेंगे ज़माने के चलन से
हमारे भी पराग अपने नियम हैं