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तुम / अंतराल / महेन्द्र भटनागर

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तुम मेरे जीवन-तरु के
हो कोमल-कोमल किसलय !

तुमसे मेरे यौवन की
होती है पहचान प्रखर,
तुमसे मुरझाए मुख का
जाता है सौन्दर्य निखर,
देते मेरे जीने का
हिल-हिल मिल-मिल कर परिचय !

आँधी-पानी में, माना
मैं जड़ से हिल जाता हूँ,
पर, प्रतिपल अंतरतम से
गीत तुम्हारा गाता हूँ,
सतत तुम्हारे ही बल पर
लड़ता रहता बन निर्भय !

रचनाकाल: 1949