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असमानों उत्तरी इल्ल वे (ढोला) / पंजाबी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात
  • असमानों उत्तरी इल्ल वे

तेरा केहड़ी कुड़ी उत्ते दिल वे सभ्भे ने कुआरियाँ, जीवें ढोला ! ढोल मक्खना ! दिल परदेसियाँ दा राज़ी रखना !

भावार्थ

--'आकाश से चील उतरी अरे तुम्हारा किस युवती पर दिल है ? सभी कुंवारी हैं जीते रहो, सजन ! ओ सजना ! ओ मक्खन ! परदेसीओं का दिल राज़ी रखना !'