भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
होली की बहार / नज़ीर अकबराबादी
Kavita Kosh से
अनूप.भार्गव (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:03, 27 फ़रवरी 2010 का अवतरण
शीर्षक
हिन्द के गुलशन में जब आती है होली की बहार।
जांफिशानी चाही कर जाती है होली की बहार।।
एक तरफ से रंग पड़ता, इक तरफ उड़ता गुलाल।
जिन्दगी की लज्जतें लाती हैं, होली की बहार।।
जाफरानी सजके चीरा आ मेरे शाकी शिताब।
मुझको तुम बिन यार तरसाती है होली की बहार।।
तू बगल में हो जो प्यारे, रंग में भीगा हुआ।
तब तो मुझको यार खुश आती है होली की बहार।।
और हो जो दूर या कुछ खफा हो हमसे मियां।
तो काफिर हो जिसे भाती है होली की बहार।।
नौ बहारों से तू होली खेलले इस दम नजीर।
फिर बरस दिन के उपर है होली की बहार।।