भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़लिश / हरकीरत हकीर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:59, 3 अप्रैल 2010 का अवतरण
यूँ क़रीब से
न गुज़रा कर
अय सबा!
तेरे क़दमों की
आहट भी
खलिश दे जाती है
कभी मुहब्बत...
मेरे दर आई जो नहीं...!!