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ख़लिश / हरकीरत हकीर

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यूँ क़रीब से
न गुज़रा कर
अय सबा!

तेरे क़दमों की
आहट भी
खलिश दे जाती है

कभी मुहब्बत...
मेरे दर आई जो नहीं...!!